जब तक रहेगा समोसे में आलू, तेरा रहूँगा ओ मेरी शालू…
यह अक्षय कुमार की एक फिल्म का गाना है, जिससे समोसे में आलू की अहमियत का पता चलता है। यानी आलू रहेगा तो समोसा बनेगा, नहीं तो आलू बिना समोसा कुछ भी नहीं।
क्या समोसा में आलू पहले से ही इस्तेमाल होता था या फिर आलू और समोसा जन्म के साथी नहीं हैं। खैर, इस पर बात करने से पहले हम अमीर खुसरो की एक पहेली में समोसे पर बात करते हैं।
वो पूछते हैं-
जूता पहना नहीं
समोसा खाया नहीं
जवाब है, तला नहीं।
यानी जूते में तला नहीं था, इसलिए नहीं पहना। वहीं समोसा तला नहीं था, इसलिए नहीं खाया।
प्रसिद्ध कवि अमीर खुसरो की इस पहेली से साफ जाहिर होता है कि समोसा उनसे भी पहले जमाने का है। अमीर खुसरो ने कहीं जिक्र किया है कि दिल्ली सल्तनत में घी में तला हुआ समोसा शाही परिवार और अमीरों को बहुत पसंद था।
भारत यात्रा पर आए इब्नबतूता ने लिखा है, मोहम्मद बिन तुगलक के दरबार में मसालेदार मांसाहारी और मूंगफली व बादाम का समोसा बड़े चाव से खाया जाता था। मुगलों के दस्तावेज आइन-ए-अकबरी में भी समोसे का जिक्र है।
एक बात तो तय है, समोसे को भले ही कुछ भरकर बनाया जाए, पर उसकी आकृति शुरू से ही तिकाेनी रही है। समोसा तिकोना ही क्यों है, यह चतुर्भुज या षटकोण जैसा क्यों नहीं है, इन सवालों का जवाब तो हम नहीं दे सकते, पर तिकोना मतलब समोसा तो कह ही सकते हैं।
क्या आपने समोसा महल के बारे में सुना है। अगर नहीं सुना है तो हम बता देते हैं।  मुगलों की राजधानी रहे फतेहपुर सीकरी में है समोसा महल। यह तिकोने आकार में है, इसलिए इसका नाम समोसा महल पड़ गया। बताया जाता है कि यह महल अकबर के जमाने में किसी रईस का था।

अब आपको बता ही देते हैं, समोसा भारत का नहीं है, बल्कि यहां यह ईरान से आया है। हां, आलू वाला समोसा भारत का ही है, वो कैसे, अभी बताते हैं।
फारसी इतिहासकार अबुल फजल ने सैकड़ों साल पहले समोसे का जिक्र किया था।
इब्न-बतूता ने मुहम्मद बिन तुगलक और अबुल फजल ने अकबर के दरबार में पेश किए जाने वाले समोसे की बात बताई है।
अब बात करते हैं समोसा साम्राज्य की। कहीं आप यह तो नहीं समझ रहे कि समोसे का नामकरण किसी साम्राज्य या राजा के नाम पर हुआ। हम बात कर रहे हैं समोसे के ईरान से भारत तक फैलने की।
ईरानी इतिहासकार अबोलफाजी बेहाकी ने “तारीख ए बेहाकी” में समोसे के बारे में लिखा है।
पर्सियन कवि इशाक अल मावसिलीकी ने समोसे पर कविता लिखी थी।
वैसे तो माना यह भी जाता है कि समोसे का जन्म मिस्र में हुआ। दुनिया की सैर करने वाला घुमक्कड़ समोसा मिस्र से लीबिया पहुंच गया। लोकप्रियता में समोसा किसी से कम नहीं है।
पुरानी किताबों और दस्तावेजों में समोसे को संबोस्का, संबूसा, संबोसाज के नाम से पेश किया गया है। कहते हैं कि फारसी भाषा के ‘संबोसाग’ से निकला हुआ शब्द है समोसा
अब आपको बताते हैं कि समोसा भारत कैसे पहुंचा। इसे ईरान और अरब के व्यापारी भारत लाए थे। इसको भारत में लोकप्रियता दिलाने वालों में मुगलों का भी योगदान था।
मुगलों को समोसे से कुछ खास प्यार था। उनकी शाही रसोई ने समोसे को लजीज बनाने के लिए नये नये प्रयोग किए। उस समय समोसा नॉनवेज वाला होता था।
दिल्ली सल्तनत के शायर अमीर खुसरो लिखते हैं, समोसा मुगल दरबार की पसंदीदा डिश थी।
अबुल फजल ने आइन-ए-अकबरी में लिखा है ” समोसे को मुख्य खाने से पहले परोसा जाता था। गेहूं के आटे या मैदा से बने तिकोने में मटन के कीमे के साथ बादाम, अखरोट, पिस्ता, मसाले भर जाते थे। फिर इसको घी में तला जाता था।
बताते हैं, जब इब्नेबबूता भारत पहुंचा तो उसने मोहम्मद बिन तुगलक के दरबार में लोगों को चाव से समोसा खाते देखा। उसने लिखा कि किस तरह हिंदुस्तान में समोसे का स्वाद सबके सिर चढ़कर बोलता है।
16वीं शताब्दी में पुर्तगाली भारत में आलू लेकर आए। भारत में आलू की खेती होने लगी। समोसे में आलू, हरी धनिया, मिर्च और मसाले भरे जाने लगे। इसका स्वाद पहले से ज्यादा लाजवाब हो गया।
हम भारतीय यह कह सकते हैं कि समोसे को शाकाहारी बनाने वाले हम ही हैं।
“द ऑक्सफोर्ड कंपेनियन टू फूड” के लेखक एलन डेविडसन लिखते हैं, “दुनियाभर में मिस्र से लेकर जंजीबार तक और मध्य एशिया से चीन तक जितनी तरह के समोसे मिलते हैं, उसमें सबसे बेहतरीन आलू वाला भारतीय समोसा ही है।”
…तो यह थी, समोसे के मांसाहारी से शाकाहारी बनने की कहानी।
चलते-चलते समोसे की तारीफ में एक और बात, वो यह कि समोसे पर इंग्लैंड इस तरह फिदा है कि वहां समोसा वीक मनाया जाता है।

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