- राजेश पांडेय
मुझे कॉमिक पढ़ने का शौक था, इसलिए बुक स्टाल पर लटकी किताबें मुझे रिझाती थीं, पर उनको खरीदने के लिए पैसे चाहिए थे, जो कभी कभार ही जेब में होते थे। पापा के साथ बाजार जाकर महीने में जरूर एक कॉमिक खरीद लेता था।
पर, हम जैसे पढ़ाकू के लिए महीने में एक किताब कुछ भी नहीं थी। हम तो कभी चाचा चौधरी के दीवाने होते और कभी स्पाइडरमैन के। बिल्लू व पिंकी की कारस्तानी तो बस पूछो मत। रॉकेट तो कमाल करता था। साबू हमारा आदर्श था और राका से उसकी फाइटिंग वाले चित्र और बातें तो हम बार-बार देखते- पढ़ते थे। चंदामामा, नंदन भी हमारी पसंद में शामिल थीं। चंदामामा में विक्रम बेताल की कहानियां पढ़ते- पढ़ते हम बढ़े हुए।
- यह बच्चा तो बातों की ‘खिचड़ी’ बनाता है
- मैथ से घबराता था, पर यह तो सबसे आसान है
- मेरे पड़ोसी आम के पेड़ ने बहुत कुछ सिखाया
कहानियों व कविताओं की एक किताब सरकारी स्कूलों में आती थी, नाम तो मुझे याद नहीं है, पर इतना पता है कि उसमें कपि नाम के बंदर के किस्से होते थे। अपने घर के पास वाले स्कूल की अध्यापिका से लेकर मैंने उस किताब को पढ़ा था। उसमें लिखी एक कविता मुझे आज भी याद है। यह इसलिए भी याद है, क्योंकि बचपन में मां ने घर आए हर मेहमान के सामने मेरे से यह कविता पढ़कर सुनवाई थी। वो कविता यह थी-
हाथी पहने बैल बॉटम और हथिनी पहने मैक्सी।
निकल पड़े वो खुली सड़क पर, ढूंढने लगे वो टैक्सी।।
तभी मिली उन्हें एक टैक्सी, जिसमें ड्राइवर बंदर।
झटपट खोल द्वार, हाथी लगा सरकने अंदर।।
बंदर बोला, सुनो महाशय और कहीं तुम जाओ।
यह मेरी छोटी सी गाड़ी, ट्रक कहीं रुकवाओ।।
यह कविता आपको अच्छी लगी तो धन्यवाद। एक किताब, जो हम सभी पढ़ते थे और अभी भी कहीं दिख जाए, एक- दो कहानी तो एक बार में ही पढ़ लेंगे। मैंने कई लोगों को यह कहते सुना कि अगर आपको अपनी अंग्रेजी में सुधार करना है तो चंपक का अंग्रेजी वाला अंक भी पढ़ा करो।
उस समय चंपक में तो जानवरों की बातों को हम बड़ी गंभीरता से लेते थे। हम सोचते थे कि जानवर कैसे बातें करते हैं। अगर, सचमुच में इंसानों और जानवरों के बीच वार्तालाप होता तो शायद बहुत सारी समस्याएं नहीं होती, जैसे कि मनुष्य व जीवों के बीच होने वाला संघर्ष। वो हम से और हम उनसे अपने सुख दुख को साझा कर पाते।
यह भी हो सकता है कि जानवर पहले इंसानों की तरह बोलते हों। पर, जब उन्होंने देखा कि बहुत सारे इंसान उनको कुछ नहीं समझते तो उन्होंने उनके साथ बात करना बंद कर दिया।वो समझते सबकुछ हैं। जानवर अगर हिंसक होता है तो उसमें संवेदनशीलता भी होती है। वो अपने काम में माहिर होते हैं और सीखते भी खुद के अनुभवों से ही। इंसानों ने अपने इंटेलीजेंस की हमेशा जीवों से ही तो तुलना की है। इस पर हम फिर कभी बात करेंगे।
हां, तो मैं कॉमिक के बारे में बता रहा था। मेरे एक दोस्त के पास कॉमिक का भंडार था, इसलिए उसका हम पर रौब जमाना बनता था, क्योंकि हमने उससे दोस्ती भी कॉमिक के लिए की हुई थी।
- मां मुझे हाथ पर पेंसिल बांधकर स्कूल भेजतीं
- पानी का मोल और कुएं पर लगता था मेला
- इसकी स्याही मेरी स्याही से गाढ़ी कैसे